About Puja
श्रीलक्ष्मी जी साक्षात् जगदम्बा स्वरूपिणी ही हैं तथा जगत् के पालनकर्ता भगवान् विष्णु की अर्धाङ्गिनी है। माता लक्ष्मी को धन, वैभव, यश, कीर्ति इत्यादि की स्वामिनी के रूप में स्थान प्राप्त है। माता लक्ष्मी जी की आराधना हेतु श्रीलक्ष्मी सहस्रनामस्तोत्र बहुत ही प्रभावशाली है। इस स्तोत्र का वर्णन, "महर्षि वेदव्यास जी द्वारा श्रीब्रह्मपुराण में उद्भासित किया गया है"। माता लक्ष्मी की उपासना से जीवन में समस्त प्रकार की सम्पन्नता का प्रादुर्भाव निश्चय ही हो जाता है। माता लक्ष्मी अपने भक्त उपासकों को विभिन्न प्रकार के सुख समृद्धि को प्रदान करती हैं। माता लक्ष्मी की महिमा अनन्त है। भौतिक जगत् में लक्ष्य प्राप्ति हेतु माता लक्ष्मी का पूर्ण योगदान रहता है।श्रीलक्ष्मी जी की उत्पत्ति देवासुर संग्राम के दौरान समुद्र मन्थन के समय हुआ।माता लक्ष्मी की उपासना हेतु अनेक स्वरूपों का वर्णन प्राप्त होता है तथा इनके अनेक स्वरूपवत् नाम हैं, जिसमे विशेष रूप से आठ स्वरूप लोकप्रिय हैं। 1-आद्यलक्ष्मी 2-विद्यालक्ष्मी 3-सौभाग्यलक्ष्मी 4-अमृतलक्ष्मी 5-कामलक्ष्मी 6-सत्यलक्ष्मी 7-भोगलक्ष्मी 8-योगलक्ष्मी हैं। श्रीलक्ष्मीसहस्रनामस्तोत्र का पाठ करने से तथा विधिवत् कराने से इन अष्टस्वरूपों की आराधना का फल प्राप्त है। इस स्तोत्र के स्तवन् से समस्त कामनाओं की प्राप्ति होती है, तथा भौतिक सुखों को सहज भाव से साधक ग्रहण (प्राप्त) कर लेता है।
Process
स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
प्रतिज्ञा सङ्कल्प
गणपति गौरी पूजन
कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
षोडशमातृका पूजन
सप्तघृतमातृका पूजन
आयुष्यमन्त्रपाठ
नवग्रह मण्डल पूजन
अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
रक्षाविधान
प्रधान देवता पूजन
पाठ विधान
विनियोग
करन्यास
हृदयादिन्यास
ध्यानम्
स्तोत्र पाठ
पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
भूरादि नौ आहुति, स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
संस्रवप्राशन, मार्जन, पूर्णपात्र दान
प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
इसके स्तवन् से अचल सम्पत्ति की प्राप्ति होती है, तथा सहजभाव से ही कृष्ण भक्ति में अभिरुचि हो जाती है।
समस्त प्रकार की अभिलाषाओं की पूर्ति होती है।
अष्टविध ऐश्वर्य की प्राप्ति इस स्तोत्र के पाठ से साधक को होती है।
सञ्चित निषिद्ध कर्मों का फल समाप्त होता है।
घर में सुख,शान्ति,ऋद्धि- सिद्धि के सहित अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु लक्ष्मीसहस्रनाम का पाठ सर्वोत्तम उपाय है।
इसके स्तवन् से साधक भय से मुक्त हो जाता है।
यह पाठ पूर्णतः शुद्धता एवं पवित्रता के साथ ही विद्वान आचार्य से करानी चाहिए जो उच्चारण स्पष्ट कर सके।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी , हल्दी, अबीर ,गुलाल, अभ्रक ,गङ्गाजल, गुलाबजल ,इत्र, शहद ,धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई ,यज्ञोपवीत, पीला सरसों ,देशी घी, कपूर ,माचिस, जौ ,दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा , सफेद चन्दन, लाल चन्दन ,अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला ,चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती,काला तिल, चावल, कमलगट्टा,हवन सामग्री, घी,गुग्गुल, गुड़ (बूरा या शक्कर), पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद , हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच , नवग्रह समिधा, हवन समिधा , घृत पात्र, कुश, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध - 100ML, दही - 50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार ), दूर्वादल (घास ) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg, पुष्पमाला -5( विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव – 2, थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि , बैठने हेतु दरी,चादर,आसन , गोदुग्ध,गोदधि ।