About Puja
"सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च" इस ऋग्वेदीय मन्त्र से ही सूर्यनारायण के समस्त अलौकिक एवं पारलौकिक महत्ता के विषय में भली भांति आंकलन हो जाता है। सूर्यदेव समस्त जगत् के आत्म स्वरूप में अवस्थित हैं। समस्त चराचर जगत् सूर्यनारायण से ही ऊर्जा और तेज की प्राप्ति करके अपने जीवन का निर्वाह सम्यक् रूप से कर रहा है। समस्त चराचर जगत् का भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास सूर्य की सत्ता पर निर्भर है। सूर्यदेव से ही प्रकृति का सन्तुलन बना हुआ है। सूर्यदेव 'नवग्रहों के अधिनायक रूप में व्योममण्डल में नित्य अवस्थित हैं। समस्त प्रकार की शक्तियों का उद्भव एवं विकास में सूर्यनारायण की महती भूमिका रहती है। सूर्यनारायण की आराधना से सभी कष्टों की निवृत्ति हो जाती है। जो भक्तगण सूर्यदेव को नित्य, ताम्रपात्र में रोली और लाल पुष्प, जल में डालकर अर्घ्य देते हैं उन भक्तों की मनोकामना को सूर्यदेव शीघ्र ही पूर्ण करते हैं। अल्प समय में सूर्यनारायण की कृपा एवं कामना सिद्धि का सर्वोत्तम उपाय सूर्यार्घ्य एवं सूर्यसहस्रनाम का विधिवत् पाठ एवं अनुष्ठान ही है।
Process
श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र पाठ अर्चन एवं हवन प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग
- करन्यास
- हृदयादिन्यास
- ध्यानम्
- स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति, स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन, मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
श्री सूर्य सहस्रनाम पाठ अर्चन एवं हवन का माहात्म्य:-
- सूर्यसहस्रनाम स्तोत्र के पाठ को सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा करवाने से धन, यश, कीर्ति एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
- यजमान के समस्त प्रकार के दुःखों एवं दुःस्वप्नों का नाश होता है।
- समस्त भयों की निवृत्ति होती है तथा विजय श्री की प्राप्ति शीघ्र ही हो जाती है।
- असाध्य रोगों की निवृत्ति होती है तथा व्यापार से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के लिए यह स्तोत्र सर्वोपरि है ।
- श्री सूर्यसहस्रनाम पाठ से घर में व्याप्त दरिद्रता से मुक्ति तथा ऐश्वर्य आदि की वृद्धि होती है।
- श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक इस स्तोत्र के पाठ से (वन्ध्या) स्त्री को भी सूर्यनारायण की कृपा से सुयोग्य सन्तान की प्राप्ति होती है।
- शारीरिक बल की प्राप्ति हेतु भी इस सहस्रनाम का पाठ कराया जाता है।
- यह स्तोत्र पाठ, नेत्रों के समस्त रोगों को दूर करता है तथा शरीर में शौर्य एवं तेज को बढ़ाता है ।
- कुण्डली में स्थित क्रूर ग्रहों की भी शान्ति, सूर्यसहस्रनाम पाठ से होती है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- पंचगव्य गोघृत
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- गड़ी गोला
- पानी वाला नारियल
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि