About Puja
सच्चिदानन्द स्वरूप भगवान् गजानन की अङ्गकान्ति सिन्दूर के समान है, उनकी चार भुजाएँ तथा वो लम्बोदर हैं,कमलदल पर विराजमान रहते है। ब्रह्मादि देवगण उनकी सेवा में युक्त रहते हैं तथा समस्त सिद्धियों के स्वामी हैं। भगवान् गजानन का मस्तक निरन्तर मदधारा से युक्त रहता है, उनके शरीर में सर्प लिपटे रहते हैं, तीनों लोकों के भक्तों का विघ्न विध्वंस करते है। भगवान् गजानन सदा मङ्गल करते हैं। हस्तिमुख सदृश, ललाट पर चन्द्रमा और बिन्दु तुल्य मुक्तामणि विराजित है, बड़े तेजस्वी एवं एक दन्त युक्त हैं, बुद्धि एवं सिद्धि के स्वामी है। उपासनीय इनके विभिन्न नाम एवं रूप हैं यथा- गणेश गजवक्त्र, महागणपति, विघ्नेश्वर,गणपति, एकाक्षरगणपति, हेरम्बगणपति, सिंह गणपति, बालगणपति आदि। उपासना की दृष्टि से वैदिक एवं लौकिक (पौराणिक) समस्त वाङ्गमय में विभिन्न पाठ, नाम, स्तोत्र,मन्त्र ,श्लोक आदि प्राप्त होते हैं, जो समस्त रिद्धि सिद्धि सहित मोक्ष प्रदायक हैं। रुद्रयामल ग्रंथ में शिव पार्वती संवाद के माध्यम से भगवान् गणपति के सहस्त्रनाम का स्तवन किया गया है।फल की दृष्टि से यह सहस्त्रनाम अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।
Process
श्री गणपति सहस्रनामपाठ में होने वाले प्रयोग या विधि:
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान
- प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग
- करन्यास
- हृदयादिन्यास
- ध्यानम्
- स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति, स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राशन, मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
श्री गणपति सहस्रनाम पाठ माहात्म्य :-
- भगवान् गणपति के सहस्रनाम पाठ से अभीष्ट सिद्धि (इच्छित वस्तुओ)की प्राप्ति तथा सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं।
- अपेक्षित शास्त्रोक्त विधि से युक्त हो कर पाठ कराने से पुत्रार्थी को पुत्र,धनार्थी को धन तथा विद्यार्थी को विद्या लाभ होता है।
- शमी की समिधा से प्रत्येक नामों के द्वारा यदि हवन किया जाएँ, तो इहलौकिक (सांसारिक) एवं पारलौकिक (पारमार्थिक) समस्त कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
- सहस्रनाम स्तोत्र पाठ से स्थिर (अनपायिनी) लक्ष्मी प्राप्त होती हैं।
- सद्पुत्र की प्राप्ति एवं शाश्वती (निरन्तर) शान्ति की प्राप्ति होती है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती,
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा,
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- पान पत्ता
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- पानी वाला नारियल
- गोदुग्ध,गोदधि
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित