About Puja
विश्वकर्मा शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिलकर हुई है – विश्व अर्थात् सम्पूर्ण ब्रहमांड , कर्मा अर्थात् निर्माण कर्ता । इसलिए भगवान् विश्वकर्मा को निर्माण,सृजन,शिल्पकला,वास्तुकला, शस्त्र एवं वाहनों समेत समस्त भौतिक व्यापारीय वस्तुओं के स्वामी के स्वरुप में पूजा जाता है। “विश्वं कृत्स्न्नं कर्म व्यापारों वा यस्य स: विश्वकर्मा अर्थात् सुदृष्टि है जिनकी एवं कर्म ही व्यापार है , ऐसा स्वरुप भगवान् विश्वकर्मा का है। धर्मग्रंथों में भगवान् विश्वकर्मा के अनेकों स्वरूपों का उल्लेख प्राप्त होता है जिनमें हैं –
- विराट् विश्वकर्मा = भगवान् विश्वकर्मा को विराट् विश्वकर्मा के स्वरूप में ब्रह्मांड का निर्माता कहा जाता है।
- धर्मवंशी विश्वकर्मा = धर्मवंशी विश्वकर्मा के स्वरूप में भगवान् विश्वकर्मा महान शिल्प विज्ञान के विधाता हैं एवं प्रभात पुत्र हैं ।
- अङ्गिरावंशी विश्वकर्मा = भगवान् वसु के पुत्र स्वरूप में।
- सुधन्वा विश्वकर्मा = महान् शिल्पाचार्य, विज्ञान के जन्मदाता के स्वरुप में ।
इत्यादि स्वरूपों में भगवान् विश्वकर्मा को जाना जाता है ।
भगवान् विश्वकर्मा का उद्भव :-
सृष्टि के निर्माता परब्रह्म परमात्मा ब्रह्माजी के पुत्र धर्म, धर्म के पुत्र वास्तुदेव, वास्तुदेव और इनकी पत्नी आंगिरसी से भगवान् विश्वकर्मा का प्रादुर्भाव हुआ । इनके पांच पुत्र हुए -मनु , मय , त्वष्टा, शिल्पी ,देवज्ञ।
वेदों एवं पुराणों में भगवान् विश्वकर्मा की सर्वप्रकार से व्यापकता एवं शक्ति की पूर्णता दृष्टिगत की गयी है। असुरों के विनाश के निमित्त वज्र नामक अस्त्र देवताओं को निर्माण कर भगवान् विश्वकर्मा ने प्रदान किया जिसके प्रभाव से देवता विजयी हुए । चतुर्वेदों में सर्वप्राचीन ऋग्वेद की ग्यारह ऋचाओं में भगवान् विश्वकर्मा की स्तुति की गयी है। शास्त्रों में वर्णित विभिन्न दिव्य पुरियों (नगरियों) का निर्माण इन्होंने ही किया ऐसा शास्त्रोल्लिखित है ।
Process
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान,
- प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
विश्वकर्मा पूजा से भक्तों को अनेक लाभ होते हैं, जो उनके कार्यों को सफल बनाते हैं। निम्नलिखित लाभ इस पूजा से प्राप्त होते हैं :-
- कार्य में सफलता :- भगवान् विश्वकर्मा की पूजा से कार्यों में सफलता और अनुकूलता प्राप्त होती है।
- व्यावसायिक समृद्धि :- पूजा से व्यापार और उद्योग में समृद्धि आती है और लाभ में वृद्धि होती है।
- दुर्भाग्य और विघ्नों का नाश :- पूजा से सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है।
- कला और शिल्प के क्षेत्र में सफलता :- कला, शिल्प, और निर्माण कार्यों में सफलता और प्रगति होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार :- कार्यस्थल में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे कार्य में गति और सफलता मिलती है।
- सिद्धि प्राप्ति :- इस पूजा से कार्यों में हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है, जिससे सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
- यंत्र अर्थात् मशीनरी उत्तम विधि से अपने कार्य को सम्पादित करते हैं ।
Puja Samagri
रोली, कलावा, सिन्दूर, लवङ्ग, इलाइची, सुपारी , हल्दी, अबीर ,गुलाल, अभ्रक ,गङ्गाजल, गुलाबजल ,इत्र, शहद ,धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई ,यज्ञोपवीत, पीला सरसों ,देशी घी, कपूर ,माचिस, जौ ,दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा , सफेद चन्दन, लाल चन्दन ,अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला ,चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वोषधि, पञ्चरत्न, मिश्री ,पीला कपड़ा सूती,काला तिल, चावल, कमलगट्टा,हवन सामग्री, घी,गुग्गुल, गुड़ (बूरा या शक्कर), पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़, काला उडद , हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच , नवग्रह समिधा, हवन समिधा , घृत पात्र, कुश, वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1, गाय का दूध - 100ML, दही - 50ML, मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार, फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार ), दूर्वादल (घास ) - 1मुठ, पान का पत्ता – 05, पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg, पुष्पमाला -5( विभिन्न प्रकार का), आम का पल्लव – 2, थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि , अखण्ड दीपक -1, तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित , पानी वाला नारियल, देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि , बैठने हेतु दरी,चादर,आसन , गोदुग्ध,गोदधि ।