About Puja
परब्रह्म अनन्त ब्रह्माण्ड नायक नारायण ही धर्म के ह्रास और अधर्म के विस्तार के समय इस धरा धाम को परम पुनीत करने के साथ ही सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों का संहार (विनाश) तथा धर्म की स्थापना करना ही उनके आविर्भाव का मुख्य हेतु अथवा प्रयोजन है।
भगवान् नारायण गोलोकाधिपति श्रीकृष्ण द्वापर के अन्त में, जब धराधाम दुष्टो तथा अराजक तत्वों से आक्रन्दित हो गयी थी, उस समय देवताओं की अभिलाषा को पूर्ण करने के उद्देश्य से माता देवकी एवं वसुदेव जी के साथ ही माता यशोदा और नन्दराय जी को भी परम आह्लाद प्रदान करने के उद्देश्य से मथुरा के कंस कारागृह में भाद्रपद मास कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि को बुधवार की घोर मध्यरात्रि की रोहिणी नक्षत्र में जिस समय सूर्य सिंह राशि तथा चंद्रमा वृष राशि पर थे, उस समय माता देवकी के गर्भ से भगवान् श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ। जो कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जगत् में विख्यात हुआ। यह व्रत महाव्रतों की कोटि में आता है जिसका अनुपालन करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।
सामान्यतः जन्माष्टमी व्रत के विषय में दो प्रकार का मत समाज में प्रचलित है। प्रथम स्मार्त (सद्गृहस्थ)अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में व्रत करते हैं, किन्तु वैष्णवमतावलम्बियों एवं संन्यास परम्परा के साधकों द्वारा सप्तमी का स्पर्श होने पर द्वितीय दिवस ही व्रत के योग्य स्वीकार करते हैं, भगवान् कृष्णचन्द्र के प्रादुर्भाव होने के कारण पलङ्ग या हिंडोला में माता देवकी सहित श्री कृष्ण चंद्र का पूजन करने का विधान है। सर्वप्रथम उत्तम वैदिक ब्राह्मण को बुलाकर स्वस्तिवाचन तथा मङ्गलमन्त्रों का पाठ कराना चाहिए एवं उन वैदिक मन्त्रों के साथ ही भगवान् कृष्ण का विधिवत् पञ्चामृताभिषेक तथा अर्चन करना चाहिए, तत्पश्चात् उपलब्ध सामग्रियों से पूजन कर प्रसाद तथा चरणामृत वितरण करने की परम्परा एवं शास्त्रीय विधान है।
Process
जन्माष्टमी व्रत में होने वाले प्रयोग या विधि :-
- जय घोष वाद्य,घंटा,शंख,भेरी आदि को बजाना
- स्वस्तिवाचन एवं मङ्गल मन्त्रों के साथ भगवान् का प्राकट्य
- सङ्कल्प
- कृष्णाभिषेक
- पूजन
- आरती
- चरणामृत एवं प्रसाद
Benefits
कृष्णजन्मोत्सव का माहात्म्य :-
- भगवान् कृष्ण का जन्मोत्सव प्रतिवर्ष आनन्द पूर्वक मनाने से जीवन में सदा आनन्द की वर्षा होती है।
- जिस घर में भगवन् कृष्ण का जन्मोत्सव प्रतिवर्ष मनाया जाता है वहा सदा ही लक्ष्मी निवास करती हैं तथा कुल में सन्तति का विस्तार होता है।
- कृष्णजन्मोत्सव निराशा में आशा का संचार करता है, अर्थात् पुत्रादि अप्राप्ति में प्राप्ति का विधान बनाता है।
- कृष्णजन्मोत्सव मनाने से सदा उस परिवार में आनन्द की वर्षा होती है तथा वह कुल सर्वगुण सम्पन्न सन्तान से युक्त रहता है।
- अनिष्ट ग्रहों एवं जन्मान्तरीय पापों के कारण जिसे पुत्र नहीं होता है,यदि वह भगवान् का जन्म धूमधाम से मनाये तो निश्चित भगवान् की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त होता है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत
- देशी घी, कपूर
- माचिस
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन
- चावल, दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 500ML
- दही - 500ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- तुलसी पत्र -7
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि
- पानी वाला नारियल
- माखन मिश्री ,खीरा ,धनिये की पंजीरी
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित