About Puja
वैदिक सनातन परम्परा में व्रतों तथा पर्वों का अपना एक विशिष्ट प्रयोजन एवं स्थान है।अनेक व्रत एवं पर्व सनातन परम्परा में विधिपूर्वक श्रद्धा एवं विश्वास के साथ हर्षोल्लास पूर्वक मनाये जाते हैं उन्हीं पर्वों में एक विशिष्ट व्रतोत्सव जगज्जननी माता दुर्गा का पर्व है जिसे हम नवरात्रि पर्व के नाम से जानते हैं। प्रत्येक वर्ष में चार नवरात्रि पर्व आते हैं। जिनमें से दो गुप्त- नवरात्रि तथा दो प्रकट नवरात्रि आती हैं। जिनका अपना विशेष महत्व है। गुप्त नवरात्रि के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें मां दुर्गा(शक्ति) की पूजा-आराधना गुप्त पद्धति से की जाती है। प्रथम गुप्त नवरात्रि आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर शुक्लपक्ष नवमी तिथिपर्यन्त होती है। द्वितीय गुप्त नवरात्रि माघ मास की शुक्लपक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि पर्यन्त रहती हैं।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नवरात्रि अर्थात् आश्विन जिसे शारदीय तथा चैत्र नवरात्रि जिसे वासन्तिक नवरात्रि भी कहा जाता है, इन दोनों नवरात्रि का विशेष रूप से वर्णन प्राप्त होता है। शारदीय नवरात्रि दुर्गा उपासना जो कि आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि पर्यन्त रहती हैं। इसी प्रकार वासन्तिक नवरात्र भी चैत्र मास में शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि पर्यन्त रहती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दोनों नवरात्रि में शास्त्रीय पद्धति से शक्ति की उपासना का विशिष्ट फल है।
अतः माता दुर्गा की उपासना के अहोरात्र नव संख्यक रखे गए हैं। यद्यपि ये चारों नवरात्रि शक्ति(दुर्गा) उपासना की दृष्टि से प्रधान है तथापि वासन्तिक तथा शारदीय नवरात्रि को विशेषतः व्रतोपासना की दृष्टि से मनाया जाता है। इन्हीं दो नवरात्रों में जगत् की मूल प्रकृति महामाया मां जगदम्बा (शक्ति, दुर्गा) की आराधना का का अगणित फल है।नवरात्र में किया गया दुर्गासप्तशती का पाठ एवं शक्ति उपासना का अनुष्ठान अन्य दिनों की अपेक्षा शत् गुना फलप्रदायिका है। तथा समस्त मनोवांछित कामनाओ को परिपूर्ण करने का यह उत्तम समय एवं साधन है।
Note: नवदिन पर्यन्त मां दुर्गा का पूजन, दुर्गासप्तशती का पाठ तथा हवन सम्पन्न कराया जायेगा।
Process
नवरात्रि पर्व एवं दुर्गासप्तशती (चण्डी) पाठ में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ, प्रतिज्ञा-सङ्कल्प, गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक, षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन, नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन, रक्षाविधान
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अथ सप्तश्लोकी दुर्गा, दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
पाठ विधि -देव्याः कवच,अर्गलास्तोत्रम् कीलकम्, वेदोक्त रात्रिसूक्तम्
तन्त्रोक्त रात्रिसूक्तम् श्री देव्यथर्वशीर्षम्, नवार्ण विधि:,सप्तशतीन्यासः
- प्रथम अध्याय - मेधा ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ वध का प्रसङ्ग सुनाना।
- द्वितीय अध्याय- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध ।
- तृतीय अध्याय- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध।
- चतुर्थ अध्याय- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति।
- पंचम अध्याय – देवी की स्तुति, चण्ड मुण्ड द्वारा माता की प्रशंसा ।
- षष्ठ अध्याय- धूम्रलोचन वध।
- सप्तम अध्याय- चण्ड मुण्ड वध।
- अष्टम अध्याय- रक्तबीज-वध।
- नवम अध्याय-निशुम्भ-वध।
- दशम अध्याय - शुम्भ वध।
- एकादश अध्याय – देवताओं द्वारा स्तुति तथा देवताओं को वरदान।
- द्वादश अध्याय - देवी चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- त्रयोदश अध्याय – सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान
- वेदोक्त देवी सूक्तम्, तन्त्रोक्त देवीसूक्तम् क्षमा प्रार्थना,सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र आदि।
Benefits
नवरात्रि में दुर्गासप्तशती (चण्डी) पाठ का माहात्म्य:-
- जो भक्त अथवा श्रद्धालु नवरात्र में मां जगदम्बा की आराधना एवं उपासना करता है या सुयोग्य वैदिक ब्राह्मणों द्वारा कराता है, उस उपासक के समस्त दुःखों का नाश हो जाता है।
- शत्रुओं नाश, भय से मुक्ति, समस्त बाधाओं की शान्ति, रोगों का नाश इत्यादि समस्त प्रकार के विघ्नों तथा बाधाओं से अवश्य ही शान्ति मिलती है।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं कलश स्थापन नवरात्रों में संजीवनी बूटी का कार्य करता है।
- नवरात्रि में घट अर्थात् कलश स्थापन का विशेष महत्व है। यदि कोई देवी उपासक विधिवत् शास्त्रीय पद्धति से घट स्थापना करता है तो उसके समस्त पाप जड़ मूल से समाप्त हो जाता है।
- घट स्थापना प्रतिपदा के दिन करनी चाहिए कलश में ब्रह्मा विष्णु , रुद्र समस्त तीर्थ, सागरों आदि का वास होता है कलश शुभता का प्रतीक होता है।
- दो वर्ष से लेकर दश वर्ष तक की कन्या का पूजन करना चाहिए। कन्याएं साक्षात् नवदुर्गा का ही स्वरूप होती हैं।
- शक्ति उपासना एवं पाठ से समस्त अरिष्टों के शमन होता है।
- महामाया की उपासना महामारी का नाश करता है।
- सौभाग्य तथा सन्तति प्राप्ति में सहायक।
- शत्रुओं पर विजय प्राप्ति में साधक।
- वैवाहिक समस्या का समाधान सुलक्षणा पत्नी प्राप्ति में सहायक।
- समस्त लौकिक तथा पारलौकिक सुखों की प्राप्ति हेतु दुर्गासप्तशती का पाठ एवं घट स्थापन उत्तम साधन है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
\हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा,
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारियल,
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित