About Puja
माता लक्ष्मी सनातन हिन्दू धर्म में प्रमुख देवी-देवताओं में से एक हैं। वह जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की पत्नी हैं। माता लक्ष्मी धन,सम्पदा,समृद्धि तथा घर परिवार में शान्ति को प्रदान करने वाली देवी हैं। इनकी पूजा तथा आराधना करने से धन सम्बन्धी समस्याओं का शमन, उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति, समृद्धि, वैभव, घर परिवार में आपसी प्रेम तथा सद्भाव का वातावरण निर्मित होता है, इनकी उपासना से साधक को भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। माता लक्ष्मी के अनेक रूप हैं, जिसमें से उनके आठ स्वरूप जिनको हमारे धर्म शास्त्रों में अष्टलक्ष्मी नाम से ख्याति प्राप्त है। इन आठ स्वरूपों की उपासना अथवा होम करने से उपासक को माता लक्ष्मी की प्राप्ति सहज भाव से ही हो जाती है।
माता लक्ष्मी की उत्पत्ति एवं विष्णु भगवान के साथ विवाह
भागवत महापुराण के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप से देवराज इन्द्र लक्ष्मी-हीन, राज्य हीन, तथा दरिद्र हो गए। महर्षि दुर्वासा के श्राप को फलीभूत करने के लिए जब माता लक्ष्मी ने इस संसार का परित्याग कर दिया और समुद्र में निवास करने लगीं तब देवताओं ने माता लक्ष्मी और अमृत के लिए समुद्र मन्थन किया। शरद् पूर्णिमा के दिन समुद्र मन्थन से माता लक्ष्मी पुनः प्रकट हुईं और शरद् पूर्णिमा के ही दिन भगवान् विष्णु से माता लक्ष्मी ने पुनः विवाह सम्पन्न किया।
अष्टलक्ष्मी= माता लक्ष्मी के आठ विशिष्ट स्वरूप:-
१- आदि लक्ष्मी
आदिलक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं,और यही लक्ष्मी का मूल रूप है। भागवत महापुराण के अनुसार आद्यलक्ष्मी ही जीव जन्तुओं तथा प्राणी जनों को जीवन प्रदान करती हैं और अपने उपासकों को मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती हैं। इनकी उपासना ओम् ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं आद्यलक्ष्म्यै नमः इस मन्त्र से करनी चाहिए।
२- विद्या लक्ष्मी
माता लक्ष्मी के इस दिव्य स्वरूप का स्तवन् करने से विद्या प्राप्ति में आ रही समस्त बाधाएं शान्त होती हैं। इनकी उपासना ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं विद्यालक्ष्म्यै नमः इस मन्त्र से करनी चाहिए।
३- सौभाग्य लक्ष्मी (भाग्य प्राप्ति)
माता लक्ष्मी के इस स्वरूप की आराधना करने से भाग्य में वृद्धि होती है, तथा घर में सुख-समृद्धि और पति तथा पुत्रादि की आयु में वृद्धि होती है। इनकी आराधना ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः इस मन्त्र से करनी चाहिए।
४ अमृतलक्ष्मी
माता लक्ष्मी के इस दिव्य स्वरूप की उपासना करने से जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति के साथ ही साधक की आयु में वृद्धि होती है। इनकी उपासना ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं अमृतलक्ष्म्यै नमः इस मन्त्र से करनी चाहिए।
५ माता लक्ष्मी का यह स्वरूप भक्तों को अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्ति कराने एवं ज्ञान चक्षु खोलनें में सहायक होता हैं । इनकी उपासना ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं कमलालक्ष्म्यै नमः इस मंत्र से करनी चाहिए
६- सत्यलक्ष्मी
माता लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा करने से जीवन में भटकाव की स्थिति से साधक को मुक्ति मिलती है,तथा जीवन में सत्य को धारण करने की क्षमता का विकास होता है। इस स्वरूप की आराधना ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सत्यलक्ष्म्यै नमः इस मन्त्र से करनी चाहिए।
७- भोगलक्ष्मी
माता लक्ष्मी के इस स्वरूप का स्तवन् विधिपूर्वक करने से समस्त भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के साथ ऐश्वर्य तथा वैभव की प्राप्ति होती है। इनका स्तवन् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं भोगलक्ष्म्यै नमः इस मन्त्र से करना चाहिए।
८- योगलक्ष्मी
माता लक्ष्मी के इस स्वरूप का स्तवन् करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस रूप के स्तवन् का मन्त्र ओम् ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं योगलक्ष्म्यै नमः है।
इस प्रकार माता लक्ष्मी के इन आठ विशेष स्वरूपों का पूजन,अर्चन, वन्दन विधिवत् करने से जीवन में धन सम्बन्धित कष्ट नहीं होता, तथा सुख, समृद्धि का आगमन होता है। उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है।
Process
श्रीअष्टलक्ष्मी मन्त्रजप (अनुष्ठान) में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
श्रीअष्टलक्ष्मी मन्त्रजप (अनुष्ठान) का माहात्म्य:-
- लक्ष्मी जी के इन स्वरूपों का पूजन करने से जीवन में आ रही धन सम्बन्धी समस्त समस्याओं की निवृत्ति होती है तथा व्यापार में उन्नति होती है।
- इनकी उपासना करने से घर परिवार में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, वैभव आदि का आगमन होता है।
- इनकी पूजा के प्रभाव से विद्या क्षेत्र में आ रही समस्त बाधाओं की निवृत्ति होती है, तथा साधक की मेधा शक्ति में वृद्धि होती है।
- इनके स्तवन् से कार्यक्षेत्र में उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
- माता लक्ष्मी की कृपा से साधक को भौतिक सुखों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।
- इनकी उपासना करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा का शमन होता है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारिय
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि