About Puja
कन्या के विवाह में आ रही समस्याओं का निराकरण करने के लिए माता कात्यायनी का जप सर्वोत्कृष्ट शास्त्रोक्त विधान है। यह परम पुनीत मन्त्र विवाह में हो रहे विलम्ब तथा अन्य किसी भी प्रकार की समस्याओं का निराकरण करता है। माता कात्यायनी का यह मन्त्र श्रीमद्भागवतमहापुराण में प्राप्त होता है| श्रीमद्भागवतमहापुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए गोपियों ने माता कात्यायनी के इस मन्त्र के द्वारा श्रद्धापूर्वक उपासना किया।
श्री शुकदेव जी कहते हैं:-
- हेमन्त ऋतु के प्रथम महीने में अर्थात् मार्गशीर्ष में व्रजकुमारियां कात्यायनी देवी की पूजा एवं व्रत करने लगीं। वे केवल हविष्यान्न खाती थीं और इस मन्त्र का श्रद्धा पूर्वक जप करतीं।
- इस मन्त्र जप के प्रभाव से सुयोग्य वर युवतियों का शीघ्र प्राप्त होता है। विवाह करवाने हेतु अथवा किसी प्रकार की समस्या या विवाह में विलंब हो रहा है तो इस मन्त्र जप के प्रभाव से समस्याएं नष्ट हो जाती हैं और कन्या को सुयोग्यवर की प्राप्ति होती है ।माता कात्यायनी की पूजा करने से दाम्पत्य जीवन सम्बन्धी समस्त बाधाओं का शमन हो जाता है,और साधकों को सुखी वैवाहिक जीवन यापन करने का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
- भागवत महापुराण के अनुसार जो युवतियां मनचाहे वर की अभिलाषा रखती हैं उनके लिए माता कात्यायनी की उपासना तथा इस मन्त्र का जप सर्वोत्कृष्ट फल की प्राप्ति कराता है। इस मन्त्र के प्रभाव से शीघ्र ही सौभाग्य तथा पति प्रेम की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथानुसार:-
इस चराचर जगत् में तीन सबसे शक्तिशाली देवता ब्रह्मा, विष्णु और शिव, महिषासुर का संहार करने के लिए एकजुट हुए थे। तीनों देवताओं की शक्ति और पराक्रम के संयोजन से एक अग्नि उत्पन्न हुई, जिससे देवी कात्यायनी का जन्म हुआ। वह नारी शक्ति की दिव्य इकाई के रूप में अवतरित हुईं, जिसमें अनन्त सूर्यों की आभा परिलक्षित हो रही थी। उनका एक रूप योद्धा का था, जिनकी तीन आंखें और लंबे काले बाल थे। मां कात्यायनी की 18 भुजाएँ थीं और प्रत्येक भुजाओं में विभिन् अस्त्र शस्त्रों को धारण की हुई थीं। जो युद्ध और विजय का प्रतिनिधित्व करती थीं। उनकी प्रत्येक भुजाओं में क्रमश: त्रिशूल, चक्र, शंख, गदा, तलवार और ढाल, धनुष और बाण, वज्र, गदा और युद्ध-कुल्हाड़ी, माला और गुलाब जल जैसे कई शक्तिशाली शस्त्र थे। माता ने अपने वाहन सिंह पर चढ़कर महिषासुर का संहार करने के लिए उसकी ओर बढ़ी। मां कात्यायनी के डर से महिषासुर भाग खड़ा हुआ और एक मरी हुई भैंस के अंदर छिप गया। लेकिन उसके सभी प्रयास व्यर्थ रहे,वह देवी कात्यायनी के क्रोध से बच नहीं सका और देवी द्वारा उसका संहार किया गया।
क्यों महत्वपूर्ण है कात्यायनी मन्त्र?
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्द गोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः।।
इस दिव्य मन्त्र की देवी माता कात्यायनी हैं। मां कात्यायनी दुर्गा माता का छठा अवतार हैं। बृहस्पति ग्रह पर देवी कात्यायनी का आधिपत्य होने के कारण जो लोग माता-पिता समाज के दबाव अथवा लोक लज्जा के भय से अपने प्रेमी से विवाह नहीं कर पाते हैं उन्हें इस मन्त्र का जप नियमानुसार स्वयं करने अथवा किसी सुयोग्य ब्राह्मण के द्वारा कराने से मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार इस जप को करने से उपासकों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है,साथ ही विवाह में आ रही समस्त अड़चनों का शमन होता है, शुद्ध तथा पवित्र अन्तःकरण से इस मन्त्र का नियमित जप करने से भक्त को शान्ति और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है ,क्योंकि मन्त्रों मे आध्यात्मिक ऊर्जा समाहित होती है।
Process
श्रीकात्यायनी मन्त्रजप (अनुष्ठान) प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- मन्त्रजप विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
श्रीकात्यायनी मन्त्रजप (अनुष्ठान) का माहात्म्य :-
- इस मन्त्र जप के प्रभाव से कन्या की विवाह में आ रही सभी बाधाएं शान्त होती हैं।
- कुण्डली में स्थित मांगलिक दोष का प्रभाव कम हो जाता है तथा विवाह के लिए उत्तम अवसर प्राप्त होते हैं।
- यह मन्त्र मनचाहे वर की प्राप्ति में सहायता प्रदान करता है।
- इस मन्त्र के जप से वैवाहिक जीवन बेहतर होता है तथा सर्वदा परस्पर नव्यप्रेम की वृद्धि होती है।
- नवविवाहित दाम्पत्य जीवन में आ रही समस्याओं का शमन होता है,और परस्पर आपसी समबन्धों में मधुरता आती है।
- जीवनसाथी को सौभाग्य, उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती,
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- पानी वाला नारियल,
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि