About Puja

उपनयन संस्कार के पश्चात् वेदारम्भसंस्कार होता है। नाम से ही स्पष्ट है कि इस संस्कार में आचार्य (गुरु) के द्वारा प्रवर एवं शाखा के अनुसार वेदों की शिक्षा दी जाती है। आचार्य महाव्याहृतियों के साथ वेद के उस शाखा का अध्ययन कराये, जिस शाखा का वह वटुक हो।वर्तमान काल में आधुनिक समाज के द्वारा यह संस्कार यज्ञोपवीत के ही साथ कर दिया जाता है। लेकिन यह सर्वथा उचित नहीं हैं।  समुचित न होने के कई कारण हैं- यज्ञोपवीत ,वेदारम्भ एवं समावर्तन  संस्कार वर्तमान समय में उसी दिन कर दिया जाता है, लेकिन इन तीन संस्कारों को कराने मे पर्याप्त समय अपेक्षित होता है। शीघ्रता के साथ करने पर अनेक विधियां छूट जाती है। इसलिए यज्ञोपवीत, वेदारम्भ तथा  समावर्तन संस्कार अलग अलग तीन दिनों में कराना उचित प्रतीत होता है।

वेदारम्भ संस्कार कब करें -

यह एक विचारणीय विषय है आज के समाज लिए, इसलिए इसका समुचित निर्णय यही होगा की प्रथम दिन यज्ञोपवीत संस्कार की समस्त विधि करायें , द्वितीय दिन वेदारम्भ संस्कार करानी चाहिए और तृतीय दिन समावर्तन संस्कार होनी चाहिए। यही विधि समीचीन एवं सर्वोत्तम है।

Process

वेदारम्भ संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 
  13. रक्षाविधान 
  14. वेदी निर्माण
  15. पञ्चभूसंस्कार (परिसमूहन, उपलेपन, उल्लेखन, उद्धरण, अभ्युक्षण)
  16. अग्निस्थापन ( समुद्भव नामक)
  17. ब्रह्मावरण
  18. कुशकण्डिका
  19. अग्निप्रतिष्ठा
  20. हवन विधि यजुर्वेद के लिए आहुतियाँ
  21. ऋग्वेद के लिए आहुतियाँ 
  22. सामवेद के लिए आहुतियाँ 
  23. अथर्ववेद के लिए आहुतियाँ
  24. देवपूजन
  25. वेदारम्भ
  26. काशी प्रस्थान
  27. विद्यार्थी के नियम तथा  अनुपालन
  28. त्र्यायुष्करण
  29. अग्निविसर्जन
  30. विष्णुरमरण
Benefits

वेदारम्भसंस्कार का वटुक के जीवन पर प्रभाव :-

  • वेदारम्भ संस्कार में अग्निस्थापन तथा हवन कर्म होता है ,जो बालक के बौद्धिक क्षमता को प्रखर बनाता है।
  • वटुक ब्रह्मचारी सर्व प्रथम गणपति, वाग्देवी सरस्वती, गुरु, वेदमाता गायत्री तथा वेद भगवान् का श्रद्धापूर्वक पूजन कर उपरोक्त देवों से आशीष की कामना करता है, जिससे उसके लौकिक शिक्षा और पार्मार्थिक शिक्षा दोनों का समुचित विस्तार होता है, इसके साथ ही वेद भगवान् की कृपा प्राप्त होती है।
  • वेदारम्भ काल में वेदमाता गायत्री के उपासना का महत्व है, यदि वटुक गायत्री उपासना कर सके तो करे अन्यथा वेदज्ञ ब्रह्मणों से उस वटुक के निमित यथासंख्या गायत्री जप करानी चाहिए जिससे बालक में ओज और कान्ति की वृद्धि होती है।
Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस, जौ 
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूती

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. तुलसी पत्र -7
  13. पानी वाला नारियल
  14. शमी पत्र एवं पुष्प 
  15. थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  16. अखण्ड दीपक -1
  17. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  18. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  19. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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About Puja

उपनयन संस्कार के पश्चात् वेदारम्भसंस्कार होता है। नाम से ही स्पष्ट है कि इस संस्कार में आचार्य (गुरु) के द्वारा प्रवर एवं शाखा के अनुसार वेदों की शिक्षा दी जाती है। आचार्य महाव्याहृतियों के साथ वेद के उस शाखा का अध्ययन कराये, जिस शाखा का वह वटुक हो।वर्तमान काल में आधुनिक समाज के द्वारा यह संस्कार यज्ञोपवीत के ही साथ कर दिया जाता है। लेकिन यह सर्वथा उचित नहीं हैं।  समुचित न होने के कई कारण हैं- यज्ञोपवीत ,वेदारम्भ एवं समावर्तन  संस्कार वर्तमान समय में उसी दिन कर दिया जाता है, लेकिन इन तीन संस्कारों को कराने मे पर्याप्त समय अपेक्षित होता है। शीघ्रता के साथ करने पर अनेक विधियां छूट जाती है। इसलिए यज्ञोपवीत, वेदारम्भ तथा  समावर्तन संस्कार अलग अलग तीन दिनों में कराना उचित प्रतीत होता है।

वेदारम्भ संस्कार कब करें -

यह एक विचारणीय विषय है आज के समाज लिए, इसलिए इसका समुचित निर्णय यही होगा की प्रथम दिन यज्ञोपवीत संस्कार की समस्त विधि करायें , द्वितीय दिन वेदारम्भ संस्कार करानी चाहिए और तृतीय दिन समावर्तन संस्कार होनी चाहिए। यही विधि समीचीन एवं सर्वोत्तम है।

Process

वेदारम्भ संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं, पूजन 
  13. रक्षाविधान 
  14. वेदी निर्माण
  15. पञ्चभूसंस्कार (परिसमूहन, उपलेपन, उल्लेखन, उद्धरण, अभ्युक्षण)
  16. अग्निस्थापन ( समुद्भव नामक)
  17. ब्रह्मावरण
  18. कुशकण्डिका
  19. अग्निप्रतिष्ठा
  20. हवन विधि यजुर्वेद के लिए आहुतियाँ
  21. ऋग्वेद के लिए आहुतियाँ 
  22. सामवेद के लिए आहुतियाँ 
  23. अथर्ववेद के लिए आहुतियाँ
  24. देवपूजन
  25. वेदारम्भ
  26. काशी प्रस्थान
  27. विद्यार्थी के नियम तथा  अनुपालन
  28. त्र्यायुष्करण
  29. अग्निविसर्जन
  30. विष्णुरमरण
Benefits

वेदारम्भसंस्कार का वटुक के जीवन पर प्रभाव :-

  • वेदारम्भ संस्कार में अग्निस्थापन तथा हवन कर्म होता है ,जो बालक के बौद्धिक क्षमता को प्रखर बनाता है।
  • वटुक ब्रह्मचारी सर्व प्रथम गणपति, वाग्देवी सरस्वती, गुरु, वेदमाता गायत्री तथा वेद भगवान् का श्रद्धापूर्वक पूजन कर उपरोक्त देवों से आशीष की कामना करता है, जिससे उसके लौकिक शिक्षा और पार्मार्थिक शिक्षा दोनों का समुचित विस्तार होता है, इसके साथ ही वेद भगवान् की कृपा प्राप्त होती है।
  • वेदारम्भ काल में वेदमाता गायत्री के उपासना का महत्व है, यदि वटुक गायत्री उपासना कर सके तो करे अन्यथा वेदज्ञ ब्रह्मणों से उस वटुक के निमित यथासंख्या गायत्री जप करानी चाहिए जिससे बालक में ओज और कान्ति की वृद्धि होती है।

Puja Samagri

वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  1. रोली, कलावा    
  2. सिन्दूर, लवङ्ग 
  3. इलाइची, सुपारी 
  4. हल्दी, अबीर 
  5. गुलाल, अभ्रक 
  6. गङ्गाजल, गुलाबजल 
  7. इत्र, शहद 
  8. धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  9. यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  10. देशी घी, कपूर 
  11. माचिस, जौ 
  12. दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  13. सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  14. अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  15. चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  16. सप्तमृत्तिका 
  17. सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  18. पञ्चरत्न, मिश्री 
  19. पीला कपड़ा सूती

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  1. वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  2. गाय का दूध - 100ML
  3. दही - 50ML
  4. मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  5. फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  6. दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  7. पान का पत्ता - 07
  8. पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  9. पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  10. आम का पल्लव - 2
  11. विल्वपत्र - 21
  12. तुलसी पत्र -7
  13. पानी वाला नारियल
  14. शमी पत्र एवं पुष्प 
  15. थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  16. अखण्ड दीपक -1
  17. तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  18. देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  19. बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  20. गोदुग्ध,गोदधि

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वेदारम्भ

वेदारम्भ संस्कार

संस्कार | Duration : 4 Hours
Price : ₹ 7100 onwards
Price Range: 7100 to 8100

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