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“सत्यनारायण व्रत कथा”
सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजा, भारतीय सनातन संस्कृति का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें भगवान् विष्णु की सत्य स्वरूप में पूजा की जाती है। यह कथा एवं पूजा, विशेष रूप से घर में सुख-शांति, उन्नति एवं आर्थिक समृद्धि के लिए की जाती है।
"सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः" अर्थात् अनन्त परब्रह्म नारायण का स्वरूप सत्य है, हम सभी उनकी शरण ग्रहण करते हैं। सत्, चित्त् एवं आनन्द स्वरूप, परात्पर ब्रह्म ही संसार में सत्यनारायण नाम से अभिव्यक्त (प्रकाशित) हो रहे हैं। परमात्मा का मूल स्वरूप सत्य है और सत्य ही नारायण हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- "धर्मसंस्थापनार्थाय" धर्म वही है जो सत्य में प्रतिष्ठित है और उसी सत्य युक्त धर्म की रक्षा एवं स्थापना के निमित्त सत्य की महिमा को प्रकाशित करने के लिए भगवान् सत्यनारायण स्वरूप में अवतार ग्रहण करते हैं।
हमारी सनातन परम्परा में सभी माङ्गलिक कार्यों के प्रारम्भ में गणेश पूजा तथा कार्य की सम्पन्नता में भगवान् सत्यनारायण की कथा श्रवण करने की विशेष परम्परा है। कथा के माध्यम से भगवान् के दिव्य स्वरूप का श्रवण तथा श्रद्धाभाव के द्वारा सत्यनारायण की उपासना होती है।
सत्यव्रती भगवान् वासुदेव का नाम, स्वरूप, लीला एवं धाम सभी सत्य हैं, इन्हीं सत्य-स्वरूप नारायण की कथा जगत् में प्रचारित एवं प्रसारित हुई। यह कथा समाज में अत्यन्त लोकप्रिय तथा प्रचलित है। समस्त शारीरिक और मानसिक विकारों की शुद्धि, सौहार्द-भाव, पवित्रता-पावनता आदि भगवान् सत्यनारायण की उपासना से ही प्राप्त होता है। अभिमान शून्य होकर साधना करने वाला साधक अपने इष्ट परमात्मा की कृपा प्राप्त करता है, इसीलिए सत्यप्रतिज्ञ होकर भगवद्गुण, लीला, कथा आदि का श्रवण कर शास्त्रानुकूल मार्ग का अनुसरण करते हुए जीवन यापन करना चाहिए।
"सत्यमेव जयति नानृतम्" अर्थात् सत्य की सदा विजय होती है, असत्य की नहीं । यह सिद्धान्त ही सत्यनारायण व्रत कथा का सार तत्व है। 'स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड में सत्यनारायण व्रत कथा प्राप्त होता है, इस कथा का दो विषय मुख्य हैं- प्रमाद (आलस) के कारण पूर्व में किये गये सत्यसङ्कल्प का विस्मरण तथा भगवत् प्रसाद का अपमान । ब्राह्मण, पत्नी, पुत्री एवं दामाद आदि को सत्य की अवहेलना करने तथा स्वकर्तव्य को समय सीमा के अन्तर्गत् पूर्ण न करने के कारण अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा।
सम्पूर्ण कथा का सार यही है कि अत्यन्त निर्धन ब्राह्मण एवं लकड़ी विक्रेता के द्वारा, सत्य का अनुशरण करने से ईश्वर की प्राप्ति हुई तथा असत्य का आचरण करने से साधुवणिक् तथा उसके परिवार की अत्यन्त दुर्गति हुई। इन कथाओं से हमें यह प्रेरणा मिलती है की सत्यमार्ग का दृढतापूर्वक पालन हमें करना चाहिए। मनुष्य जब सत्य का पालन या अनुसरण करता है तो सर्वदा उसे कल्याण की प्राप्ति होती है।
इस कथा का श्रवण करने से कुछ शङ्काएँ भी उत्पन्न होती हैं, जिज्ञासु जिज्ञासा करते हैं कि साधुवणिक्, शतानन्द, उल्लकामुख, काष्ठविक्रेता, तुङ्गध्वज आदि के द्वारा किस कथा का श्रवण किया गया था ?
कथा के माध्यम से भगवान् सत्यनारायण का पूजन, सत्यव्रत का पालन एवं भगवत्-लीला का श्रवण करना ही मूल उद्देश्य है। सत्यनारायण व्रत एवं पूजन के साथ ही भगवान् की दिव्य लीलाओं का श्रवण, स्मरण, कीर्तन, करने की भी महत्ता है।
अनन्त अखिलब्रह्माण्ड नायक आदि पुरुष परमपिता परमात्मा ही सत्य हैं और एक मात्र वही ध्यान एवं उपासना के योग्य हैं, नवधा भक्ति के द्वारा साधक परमात्मा की अनुभूति होती है।
कथा प्रारम्भ से पूर्व सभी देवताओं का आवाहन, स्थापन एवं पूजन किया जाता है, कथा के अनन्तर होम आदि करना चाहिए। प्रत्येक पूर्णिमा अथवा किसी भी मांगलिक अवसर पर इस कथा के श्रवण का विधान है।
सनातन का सङ्कल्प - विधि का अनुपालन तथा उत्तमोत्तम सेवा :-
सनातन का सत्य सङ्कल्प है कि हम अपने प्रत्येक याजक को सर्वोत्तम सेवा और गुणवत्ता प्रदान करेंगे। हमारे पण्डितजी के द्वारा की जाने वाली पूजा श्रद्धा और विधिपूर्वक संपन्न की जाती है। हम आपको आश्वस्त करते हैं कि हमारे द्वारा दी जाने वाली सभी पूजा सामग्रियां उच्च गुणवत्ता की होती हैं और आपके विश्वास का पूरी तरह सम्मान किया जाता है। सनातन में, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक पूजा आपके जीवन को सुख, शान्ति तथा समृद्धि से भर दे।
हमारे पण्डितजी अत्यधिक अनुभवी और प्रशिक्षित हैं, जो सभी धार्मिक अनुष्ठानों को विधिपूर्वक सम्पन्न करते हैं। (सनातन) हम आपका विश्वास हमारे साथ बनाये रखने के लिए आभारी हैं और आपके आध्यात्मिक मार्ग को सुदृढ़ बनाने का संकल्प लेते हैं।
"सनातन के साथ आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हुए, आपकी प्रत्येक मनोकामना सत्यनारायण की कृपा से पूर्ण हो।"
Process
सत्यनारायण व्रतकथा में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
कलश स्थापन वरुणादि देवताओं का पूजन
षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका,नवग्रह पूजन
अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता,
पञ्चलोकपाल, दस दिक्पाल, वास्तुदेवता पूजन एवं स्मरण
शालग्राम शिलापूजन या लड्डू गोपाल पूजन
सरस्वती एवं ब्राह्मण पूजन
अथ श्रीसत्यनारायण व्रत कथा प्रारम्भ प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ एवं पञ्चम अध्याय
हवन प्रकरण
सङ्कल्प
पंचभूसंस्कार, अग्निध्यान पूजन
हवन विधि (आधार आहुति,आज्य आहुति)
द्रव्यत्याग (वराहुति) नवग्रहहोम, प्रधान होम
अग्नि का उत्तरपूजन, स्विष्टकृत हवन
भूरादि नव आहुतियाँ, अग्निप्रदक्षिणा, त्र्यायुष्करण, संस्रवप्राशन और दक्षिणादान
उत्तर पूजन,आरती, पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा, क्षमाप्रार्थना
आवाहित देवों का विसर्जन
रक्षाबन्धन, तिलककरण, आशीर्वाद, चरणामृत ग्रहण
तुलसीग्रहण, प्रसादग्रहण
Benefits
श्रीसत्यनारायण व्रत कथा माहात्म्य -
जो व्यक्ति भक्तिभाव से युक्त होकर सत्यनारायण व्रतकथा करता है या सुनता है, उसे सत्य अनुपालन की शक्ति के साथ ही सत्यनारायण की कृपा से धन धान्य की प्राप्ति होती है।
कथा के प्रभाव से दरिद्र धनवान् , जिज्ञासु ज्ञानवान्, बन्धन युक्त व्यक्ति बन्धन मुक्त तथा भयभीत व्यक्ति अभय को प्राप्त करता है।
कथानुकूल आचरण एवं व्यवहार से सभी ईप्सित (इच्छित), फलों की प्राप्ति होती है।
सत्यनारायण की कृपा से समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है।
अनेक रूपों को धारणकर भगवान् सत्यनारायण सभी का मनोरथ पूर्ण करते हैं।
जो इस सत्यनारायण व्रत का आचारण एवं अनुपालन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
महान ज्ञाता शतानन्द नामक ब्राह्मण दूसरे जन्म में सुदामा नामक ब्राह्मण हुए जो कृष्ण के सखा एवं उनको कृष्ण कृपा की भी प्राप्त हुई।
लकड़हारा भिल्ल निषादराज गुह हुए और भगवान् श्रीरामचन्द्र की कृपा प्राप्ति हुई।
महाराज उल्लकामुख राजा दशरथ हुए तथा भगवान् राम का पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
धार्मिक सत्यव्रती साधु, सत्यव्रत के प्रभाव से मोरध्वज राजा हुए और पुत्र का शरीर आरे से चीरकर भगवान् विष्णु को अर्पित कर दिया।
महाराज तुङ्गध्वज जन्मान्तर में स्वायम्भू मनु हुए और भगवन्निष्ठ होकर अन्ततः मोक्ष को प्राप्त किये।
समस्त गोपगण सत्यप्रसाद से जन्मान्तर में ब्रज मण्डल में निवास करने वाले गोप हुए। वे भगवान् कृष्ण की विभिन्न लीलाओं के प्रत्यक्षदर्शी रहे और अन्ततः गोलोक की प्राप्ति किये।
इस प्रकार भगवान् सत्यनारायण व्रत के अनेक प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभ वर्तमान समाज में भी दिखाई देते हैं।
Puja Samagri
रोली, कलावा
सिन्दूर, लवङ्ग
इलाइची, सुपारी
हल्दी, अबीर
गुलाल, अभ्रक
गङ्गाजल, गुलाबजल
इत्र, शहद
धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
यज्ञोपवीत, पीला सरसों
देशी घी, कपूर
माचिस, जौ
दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
सफेद चन्दन, लाल चन्दन
अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
सप्तमृत्तिका
सप्तधान्य, सर्वोषधि
पञ्चरत्न, मिश्री
पीला कपड़ा सूती