About Puja
यह कवच श्रीस्कन्द पुराण के ब्रह्मोत्तर खण्ड में वर्णित है। यह शिवकवच गोपनीय, अत्यन्त आदरणीय, समस्त पापध्वंसक, सारे अमङ्गलों तथा विघ्न बाधाओं को हरने वाला, परम पवित्र, जयप्रद (विजय प्राप्तिकर) और सम्पूर्ण विपत्तियों का नाशक माना गया है। यह परमहितकारी है तथा समस्त भयों को दूर करता है। इस कवच के प्रभाव से क्षीणायु मृत्यु के समीप पहुँचा हुआ महान् रोगी मनुष्य भी शीघ्र निरोगता को प्राप्त करता है और दीर्घायु हो जाता है। अर्थाभाव (धन के अभाव) से पीड़ित मनुष्य की सारी दरिद्रता दूर हो जाती है और उसको सुख वैभव की प्राप्ति होती है। पापी महापातक से छूट जाता है। महर्षि ऋषभ ने इसका उपदेश करके एक संकटग्रस्त राजा को दुःख मुक्त किया था।
Process
अमोघ शिवकवच में होने वाले प्रयोग या विधि-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान,
- प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश, मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
अमोघशिवकवच पाठ माहात्म्य :-
- शुद्धता एवं स्पष्टता पूर्वक अमोघ शिवकवच के पाठ से भगवान् शिव परम प्रसन्न होकर उस भक्त (जिसके निमित्त कराया जा रहा है) सर्वभाँति कवच (ढाल) बनकर उसकी रक्षा करता है।
- प्राचीन काल में युद्ध के लिए रणक्षेत्र में जाते हुए राजा, मन्त्री, सैनिक आदि विभिन्न अस्त्रों से स्वयं की रक्षा के लिए कवच आदि धारण करते थे। उसी प्रकार भक्त समस्त अभिलषित वस्तुओं की प्राप्ति तथा दुःखों की निवृत्ति के लिए शिवकृपा रूपी कवच को धारण करता है।
- इस कवच के प्रभाव से रोगी को रोगों से रक्षा तथा दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
- शिवकवच के प्रभाव से निर्धन व्यक्ति की निर्धनता दूर होती है, तथा धन वैभव की प्राप्ति होती है।
- शिवकवच के प्रभाव से साधक के शरीर के वाह्य भाग में एक अदृश्य रक्षा कवच का निर्माण हो जाता है जिसके प्रभाव से दृश्य या अदृश्य आक्रामक शक्तियाँ उस साधक का अनिष्ट नहीं कर पाता।
- विद्यार्थी के विद्या वैभव की वृद्धि के उद्देश्य से यदि इसका पाठ कराया जाए तो विद्यार्थी विद्यावान् तथा सद्गुण सम्पन्न होता है और भगवान् सदाशिव सर्वत्र सर्वप्रकार से उसकी रक्षा करते हैं तथा भगवान् शिव में अपार प्रीति होती है जो साधक को निरन्तर मार्गदर्शक के रूप में स्थिर रहते है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तुलसी पत्र -7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारियल
- थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- गोदुग्ध,गोदधि