About Puja

शिशु को प्रथम बार तरल, स्वादिष्ट,मधुर, सात्विक एवं पवित्र अन्न खिलाया जाता है, उसे अन्नप्राशन संस्कार कहते हैं। सुस्वादु अन्न कब खिलाना चाहिए इस विषय में ' पारस्कर गृह्यसूत्र ' में स्पष्ट वर्णन है - "षष्ठेमासेऽन्नप्राशनम् ",अर्थात् जन्म के छठे महीने में अन्नप्राशन करना चाहिए। सुश्रुत संहिता में भी अन्नप्राशन का यही समय उचित बताया गया है ।एक अन्य आचार्य का मत है कि बालक का अन्नप्राशन आठवें दसवें तथा बारहवें सम महीने में तथा बालिका का पांचवें, सातवें, नवें, ग्यारहवें विषम महीने में करें। किंतु आचार्य पारस्कर जो छठवें महीने में अन्नप्राशन संस्कार को मानते हैं वही मत समाज में प्रचलित है। अन्नप्राशन में गुरु शुक्रास्त तथा मलमास आदि का दोष नहीं लगता। 'व्यास स्मृति' में भी यही कहा है- "षष्ठेमास्यन्नमश्नीयात्" अर्थात् छठवें महीने में शिशु का अन्नप्राशन करें |

Process

अन्नप्राशन संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. पञ्चभू संस्कार 
  15. शुचिनामक अग्नि का स्थापन
  16. चारुपाक (पायस) बनावे हवन के लिए
  17. कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुती
  20. चरु होम
  21. स्विष्टकृत आहुती
  22. संस्रवप्राशन विधि
  23. मार्जन विधि
  24. पवित्रप्रतिपत्ति
  25. पूर्णपात्र दान 
  26. प्रणीता विमोक
  27. मार्जन
  28. बर्हिहोम
Benefits

अन्नप्राशन संस्कार का माहात्म्य-

  • इस संस्कार से गर्भ में, जो शिशु पर आहार आदि के दोष का प्रभाव पडता है। वह दूर होता है।
  • दोषयुक्त अन्नरस की निवृत्ति के लिए हवन पूर्वक पवित्र हविष्यान्न, मधु एवं घृत युक्त खीर ,बालक या बालिका को खिलाया जाता है। जिससे अन्तःकरण शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है।
  • छठवें महीने तक शिशु पूर्णत: माता के दूध पर ही निर्भर रहता है, अर्थात् माता के  दूध से आवश्यक तत्व प्राप्त कर लेता है, किंतु उसके बाद शरीर वृद्धि में मातृदुग्ध पर्याप्त नहीं होता, उसे ठोस आहार की आवश्यकता होती है , जिसके कारण वैदिक रीति से अन्नप्राशन कराया जाता है।
  • अन्नप्राशन संस्कार से पुष्टि एवं ओज की वृद्धि होती है।
  • अन्नप्राशन के पश्चात् शरीर में विकाश की गति तेजी से होती है।
  • अन्नप्राशन संस्कार से बालक स्वावलंबी होता है।
  • अन्नप्राशन में प्रथमतया हविष्यान्न,मधु ,पायस  (खीर) आदि का ही उपयोग होता है, जिससे बालक या बालिका का शरीर ,इंद्रियाँ  एवं अन्तःकरण निर्मल एवं दोष रहित होते हैं।
     
Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • पानी वाला नारियल
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

No FAQs Available

About Puja

शिशु को प्रथम बार तरल, स्वादिष्ट,मधुर, सात्विक एवं पवित्र अन्न खिलाया जाता है, उसे अन्नप्राशन संस्कार कहते हैं। सुस्वादु अन्न कब खिलाना चाहिए इस विषय में ' पारस्कर गृह्यसूत्र ' में स्पष्ट वर्णन है - "षष्ठेमासेऽन्नप्राशनम् ",अर्थात् जन्म के छठे महीने में अन्नप्राशन करना चाहिए। सुश्रुत संहिता में भी अन्नप्राशन का यही समय उचित बताया गया है ।एक अन्य आचार्य का मत है कि बालक का अन्नप्राशन आठवें दसवें तथा बारहवें सम महीने में तथा बालिका का पांचवें, सातवें, नवें, ग्यारहवें विषम महीने में करें। किंतु आचार्य पारस्कर जो छठवें महीने में अन्नप्राशन संस्कार को मानते हैं वही मत समाज में प्रचलित है। अन्नप्राशन में गुरु शुक्रास्त तथा मलमास आदि का दोष नहीं लगता। 'व्यास स्मृति' में भी यही कहा है- "षष्ठेमास्यन्नमश्नीयात्" अर्थात् छठवें महीने में शिशु का अन्नप्राशन करें |

Process

अन्नप्राशन संस्कार में होने वाले प्रयोग या विधि:-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध  (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन 
  13. रक्षाविधान आदि
  14. पञ्चभू संस्कार 
  15. शुचिनामक अग्नि का स्थापन
  16. चारुपाक (पायस) बनावे हवन के लिए
  17. कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुती
  20. चरु होम
  21. स्विष्टकृत आहुती
  22. संस्रवप्राशन विधि
  23. मार्जन विधि
  24. पवित्रप्रतिपत्ति
  25. पूर्णपात्र दान 
  26. प्रणीता विमोक
  27. मार्जन
  28. बर्हिहोम
Benefits

अन्नप्राशन संस्कार का माहात्म्य-

  • इस संस्कार से गर्भ में, जो शिशु पर आहार आदि के दोष का प्रभाव पडता है। वह दूर होता है।
  • दोषयुक्त अन्नरस की निवृत्ति के लिए हवन पूर्वक पवित्र हविष्यान्न, मधु एवं घृत युक्त खीर ,बालक या बालिका को खिलाया जाता है। जिससे अन्तःकरण शुद्ध एवं पवित्र हो जाता है।
  • छठवें महीने तक शिशु पूर्णत: माता के दूध पर ही निर्भर रहता है, अर्थात् माता के  दूध से आवश्यक तत्व प्राप्त कर लेता है, किंतु उसके बाद शरीर वृद्धि में मातृदुग्ध पर्याप्त नहीं होता, उसे ठोस आहार की आवश्यकता होती है , जिसके कारण वैदिक रीति से अन्नप्राशन कराया जाता है।
  • अन्नप्राशन संस्कार से पुष्टि एवं ओज की वृद्धि होती है।
  • अन्नप्राशन के पश्चात् शरीर में विकाश की गति तेजी से होती है।
  • अन्नप्राशन संस्कार से बालक स्वावलंबी होता है।
  • अन्नप्राशन में प्रथमतया हविष्यान्न,मधु ,पायस  (खीर) आदि का ही उपयोग होता है, जिससे बालक या बालिका का शरीर ,इंद्रियाँ  एवं अन्तःकरण निर्मल एवं दोष रहित होते हैं।
     

Puja Samagri

 वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • चावल 
  • कमलगट्टा
  • हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  • हवन समिधा 
  • घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
  • गाय का दूध - 100ML
  • दही - 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) - 1मुठ 
  • पान का पत्ता - 07
  • पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
  • पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव - 2
  • विल्वपत्र - 21
  • तुलसी पत्र -7
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  • पानी वाला नारियल
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
  • थाली - 2 , कटोरी - 5 ,लोटा - 2 , चम्मच - 2 आदि 
  • अखण्ड दीपक -1
  • देवताओं के लिए वस्त्र -  गमछा , धोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन 
  • गोदुग्ध,गोदधि

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अन्नप्राशन

अन्नप्राशन संस्कार

संस्कार | Duration : 3 Hrs 30 min
Price : ₹ 4500 onwards
Price Range: 4500 to 5500

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