About Puja
यह स्तोत्र भगवान् विष्णु की उपासना के लिए समर्पित है। भगवान् विष्णु की आराधना तथा उपासना का विशेष महत्व है। महाभारत के वनपर्व में उधृत है, कि महाराज युधिष्ठिर के महत्वपूर्ण राजसूय यज्ञ सम्पन्न होने के पश्चात् दुर्योधन ने भी कर्ण से राजसूय यज्ञ करने के लिए इच्छा प्रकट की। कर्ण ने कहा - 'तुम अपने वेदज्ञ कुल पुरोहित से राजसूय यज्ञ कराओ'। दुर्योधन ने अपने कुल पुरोहित से कहा "हे पुरोहित, आप मेरे पक्ष से उत्तम विधिविधान से राजसूय नामक यज्ञ करो, उसके पूर्ण होने पर मैं "आपको श्रेष्ठ दक्षिणा दूँगा। यह सुनकर कुलपुरोहित ने कहा - हे कौरव श्रेष्ठ! जब तक महाराज युधिष्ठिर तथा तुम्हारे पिता जीवित हैं, तब तक तुम राजसूय यज्ञ नहीं कर सकते।
किन्तु भगवान् विष्णु जो समस्त अघ समूहों के नाशक हैं, उनकी आराधना कर सकते हो। भगवान् विष्णु का अलौकिक माहात्म्य हैं-
तिथिर्विष्णुस्तथा वारो नक्षत्रं विष्णुरेव च ।
योगश्च करणं चैव सर्वं विष्णु मयं जगत् ॥
तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण सम्पूर्ण यह जगत् विष्णुमय है। इसीलिए भगवान् विष्णु से युक्त, यह अपामार्जन स्तोत्र विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वर्णित है, जिसकी अनन्त महिमा है।
Process
अपामार्जन स्तोत्र में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Benefits
अपामार्जन स्तोत्र पाठ का माहात्म्य :-
- अपामार्जन स्तोत्र के पाठ या अनुष्ठान से विष आदि रोगों का निवारण होता है।
- शरीरगत् तथा मनोगत् समस्त असाध्य रोगों का अपनयन होता है।
- भगवान् विष्णुशक्तियुक्त, अपामार्जन स्तोत्र विशेषकर नेत्ररोग, शिरोरोग, उदररोग, श्वासरोग, कम्पन, नासिका रोग, पादरोग, कुष्ठरोग, क्षयरोग (टी.बी.) भगन्दर, अतिसार, मुखरोग, पथरी, वात,कफ, पित्त सम्बन्धित समस्त रोग, अन्य असाध्य रोग इस स्तोत्र पाठ से समाप्त होते हैं।
- परकृत्य, भूत-प्रेत- वेताल, पिशाच, डाकिनी, शत्रुपीड़ा, ग्रहपीड़ा, भय, शोक, दुःखादि बन्धनों से साधक को मुक्ति मिलती है।
Puja Samagri
वैकुण्ठ के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय - एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का - 1
- गाय का दूध - 100ML
- दही - 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) - 1मुठ
- पान का पत्ता - 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार - 2 kg
- पुष्पमाला - 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव - 2
- विल्वपत्र - 21
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- तुलसी पत्र -7
- पानी वाला नारियल
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली - 2, कटोरी - 5, लोटा - 2, चम्मच - 2 आदि
- अखण्ड दीपक -1
- देवताओं के लिए वस्त्र - गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि